
एक कविता सी ही तो हो ना तुम।
कहानी सी बतलाती ,आशाओं से भरी हुई।
शब्दों सी गहरी,अर्थ से भी खूबसूरत।
एक प्यारी सी ,सबसे सुंदर कलम से गढ़ी हुई,
एक कविता।
स्थाई जैसी निरर्थक, अंतरे जैसे तजुर्बे अपनाए हुए।
एक कविता सी ही तो हो तुम।
तुम्हें कोई पढ़ें तो पसंद नहीं आता।
शीर्षक किसी और से तुम्हारा मुझसे सुना नहीं जाता।
कैसे खुद को हर बार फुसला लेती हो तुम।
तुक सी लय के साथ गुन-गुना लेती हो तुम।
अल्पविराम सा ठहरा हुआ स्वभाव अपनाए हुए भी ना सबसे आगे रहती हो तुम।
रोज गिरती हो ,थकती हो ,फिर उठ जाती हो ना अपने को जतलाने को तुम।
एक कविता सी ही तो हो ना तुम।